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उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽसि प्र॒जाप॑तये त्वा॒ जुष्टं॑ गृह्णाम्ये॒ष ते॒ योनि॑श्च॒न्द्रमा॑स्ते महि॒मा। यस्ते॒ रात्रौ॑ संवत्स॒रे म॑हि॒मा स॑म्ब॒भूव॒ यस्ते॑ पृथि॒व्याम॒ग्नौ म॑हि॒मा स॑म्ब॒भूव॒ यस्ते॒ नक्ष॑त्रेषु च॒न्द्रम॑सि महि॒मा स॑म्ब॒भूव॒ तस्मैं॑ ते महि॒म्ने प्र॒जाप॑तये दे॒वेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। प्र॒जाप॑तय॒ इति॑ प्र॒जाऽप॑तये। त्वा॒। जुष्ट॑म्। गृ॒ह्णा॒मि॒। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। च॒न्द्रमाः॑। ते॒। म॒हि॒मा। यः। ते॒। रात्रौ॑। सं॒व॒त्स॒रे। म॒हि॒मा। स॒म्ब॒भूवेति॑ सम्ऽब॒भूव॑। यः। ते॒। पृ॒थि॒व्याम्। अ॒ग्नौ। म॒हि॒मा। स॒म्ब॒भूवेति॑ सम्ऽब॒भूव॑। यः। ते॒। नक्ष॑त्रेषु। च॒न्द्रम॑सि। म॒हि॒मा। स॒म्ब॒भूवेति॑ सम्ऽब॒भूव॑। तस्मै॑। ते॒। म॒हि॒म्ने। प्र॒जाप॑तय॒ इति॑ प्र॒जाऽप॑तये। दे॒वेभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:4


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर ! जो आप (उपयामगृहीतः) सत्कर्म अर्थात् योगाभ्यास आदि उत्तम काम से स्वीकार किये हुए (असि) हो, उन (त्वा, जुष्टम्) सेवा किये हुए आपको (प्रजापतये) प्रजा की पालना करनेवाले राजा की रक्षा के लिये मैं (गृह्णामि) ग्रहण करता अर्थात् मन में धरता हूँ, जिन (ते) आप के संसार में (एषः) यह (योनिः) जल वा जिन (ते) आपका संसार में (चन्द्रमाः) चन्द्रलोक (महिमा) बड़प्पन वा जिन (ते) आपका (यः) जो (रात्रौ) रात्रि और (संवत्सरे) वर्ष में (महिमा) बड़प्पन (सम्बभूव) सम्भव हुआ, होता और होगा (यः) जो (ते) आपकी सृष्टि में (पृथिव्याम्) अन्तरिक्ष वा भूमि और (अग्नौ) आग में (महिमा) बड़प्पन (सम्बभूव) सम्भव हुआ, होता और होगा तथा जिन (ते) आपकी सृष्टि में (यः) जो (नक्षत्रेषु) कारण रूप से विनाश को न प्राप्त होनेवाले लोक-लोकान्तरों में और (चन्द्रमसि) चन्द्रलोक में (महिमा) बड़प्पन (सम्बभूव) सम्भव हुआ, होता और होगा उन (ते) आप के (तस्मै) उस (महिम्ने) बड़प्पन (प्रजापतये) प्रजा पालने हारे राजा (देवेभ्यः) और विद्वानों के लिये (स्वाहा) सत्याचरणयुक्त क्रिया का हम लोगों को अनुष्ठान करना चाहिये ॥४ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिसके महिमा सामर्थ्य से सब जगत् विराजमान, जिसका अनन्त महिमा और जिसकी सिद्धि करने में रचना से भरा हुआ समस्त जगत् दृष्टान्त है, उसी की सब मनुष्य उपासना करें ॥४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(उपयामगृहीतः) उपयामेन सत्कर्मणा योगाभ्यासेन गृहीतः स्वीकृतः (असि) (प्रजापतये) प्रजापालकाय (त्वा) त्वाम् (जुष्टम्) सेवितम् (गृह्णामि) (एषः) (ते) तव सृष्टौ (योनिः) जलम्। योनिरित्युदकनामसु पठितम् ॥ (निघं०१.१२) (चन्द्रमाः) चन्द्रलोकः (ते) तव (महिमा) (यः) (ते) तव (रात्रौ) (संवत्सरे) (महिमा) (सम्बभूव) (यः) (ते) तव (पृथिव्याम्) अन्तरिक्षे भूमौ वा (अग्नौ) विद्युति (महिमा) (सम्बभूव) (यः) (ते) तव (नक्षत्रेषु) कारणरूपेण नाशरहितेषु लोकान्तरेषु (चन्द्रमसि) चन्द्रलोके (महिमा) (सम्बभूव) (तस्मै) (ते) तव (महिम्ने) (प्रजापतये) (देवेभ्यः) (स्वाहा) सत्याचरणयुक्ता क्रिया ॥४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर ! यस्त्वमुपयामगृहीतोऽसि तं त्वा जुष्टं प्रजापतयेऽहं गृह्णामि, यस्य ते सृष्टावेष योनिर्जलं, यस्य ते सृष्टौ चन्द्रमा महिमा यस्य ते यो रात्रौ संवत्सरे महिमा च सम्बभूव, यस्ते सृष्टौ पृथिव्यामग्नौ महिमा सम्बभूव, यस्य ते सृष्टौ यो नक्षत्रेषु चन्द्रमसि च महिमा सम्बभूव तस्य ते तस्मै महिम्ने प्रजापतये देवेभ्यश्च स्वाहाऽस्माभिरनुष्ठेया ॥४ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यस्य महिम्ना सामर्थ्येन सर्वं जगद्विराजते यस्यानन्तो महिमास्ति यस्य सिद्धौ रचनाविशिष्टं सर्वं जगद्दृष्टान्तमस्ति, तमेव सर्वे मनुष्या उपासीरन् ॥४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! ज्याच्या अनंत सामर्थ्याने हे जग विराजमान आहे व त्याची अनंत महिमा वर्णन करण्यासाठी हे जग हा एक दृष्टांत आहे. त्या परमेश्वराची सर्व माणसांनी उपासना केली पाहिजे.